राजनीति

ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को रैड लाइट की जरूरत

आज  के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच मीडिया के लिए विश्वसनियता की अहमियत पहले से ज्यादा बढ़ गई है। आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्‍तुनिष्‍ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। इंटरनेट और सूचना के आधिकार (आर.टी.आई.) ने आज की पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध की और कराई जा सकती है। मीडिया आज काफी सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है।आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे – अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता और सोशल मीडिया आदि।

बदलते वक्त के साथ बाजारवाद और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों ने पत्रकारिता की विषय-वस्तु तथा प्रस्तुति शैली में व्यापक परिवर्तन किए है। पत्रकारिता की पहुँच और आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का व्यापक इस्तेमाल आमतौर पर सामाजिक सरोकारों और भलाई से ही जुड़ा है, किंतु अब इसका दुरूपयोग भी होने लगा है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क लोगों के लिए खबर का स्रोत बन गए हैं, लेकिन इनका कोई पत्रकारिता मानदंड नहीं है। इन कंपनियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अत्यधिक लक्षित एल्गोरिदम द्वारा गलत सूचना या समाचार के प्रसार को बहुत बढ़ाया गया है। वे उन सूचनाओं के साथ उपयोगकर्ताओं पर बमबारी करने की संभावना रखते हैं।

वे उन सूचनाओं के साथ उपयोगकर्ताओं पर बमबारी करने की संभावना रखते हैं जो कि एल्गोरिथ्म को क्या लगता है कि खोजकर्ता को क्या पता होना चाहिए, यह सुदृढ़ करने के लिए कार्य करता है। जैसा कि वे खुद को इंटरनेट से परिचित करते हैं, नए ऑनलाइन भारतीय एल्गोरिदम के शिकार होने के लिए बाध्य हैं जो सामाजिक नेटवर्क फर्मों का उपयोग करते हैं। नए ऑनलाइन भारतीय एल्गोरिदम के शिकार होने के लिए बाध्य हैं जो सामाजिक नेटवर्क फर्मों का उपयोग करते हैं।

संचार क्रांति तथा सूचना के आधिकार के अलावा आर्थिक उदारीकरण ने पत्रकारिता के चेहरे को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। विज्ञापनों से होने वाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज आधिक से आधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोन का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से कहीं भटक गया है। मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता के बजाय आज इन्फोटेमेंट ही मीडिया की सुर्खियों में रहता है।

इंटरनेट की व्यापकता और उस तक सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इंटरनेट के उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने तथा आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस उपयोगी साधन का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि यदा-कदा मीडिया के इन बहुपयोगी साधनों पर अंकुश लगाने की बहस भी छिड़ जाती है। गनीमत है कि यह बहस सुझावों और शिकायतों तक ही सीमित रहती है। उस पर अमल की नौबत नहीं आने पाती। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता हो स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए और पत्रकारिता का अपना हित इसमें है कि वह आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक सरोकारों के प्रति अपने दायित्वों के ईमानदार निवर्हन के लिए करती रहे।

हाल ही में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझाते हुए मीडिया कर्मियों से आग्रह किया कि उन्हें पत्रकारिता के नियमों और सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और फर्जी और गलत खबरों के प्रसार को रोकना चाहिए। साथ ही लोगों तक सही सटीक और सरल भाषा में खबरें पहुंचानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम इस समय बदलाव और सुधारों की दिशा में आगे बढ़ रहे है।  इन सुधारों को आगे ले जाने के लिए सटीक जानकारी और प्रक्रिया जरूरी है। वक्त के साथ विकास को बढ़ावा देने और समाज की बेहतरी के लिए बदलाव लाने वाले कारकों पर मीडिया को अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए और ऐसी खबरों को तव्वजो देनी चाहिए.

वेंकैया नायडू ने तकनीक आधारित सोशल मीडिया दिग्गजों और राजस्व उत्पन्न करने के लिए संघर्ष कर रहे पारंपरिक मीडिया के बीच एक राजस्व साझाकरण मॉडल को कारगर बनाने के लिए प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों की आवश्यकता को रेखांकित किया। हालांकि पारंपरिक प्रिंट मीडिया ईमानदारी से ऑनलाइन होकर तकनीकी व्यवधान को अपना रहा है, यह एक व्यवहार्य राजस्व मॉडल के साथ आने के लिए संघर्ष कर रहा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ देश प्रिंट मीडिया के लिए सोशल मीडिया दिग्गजों द्वारा राजस्व साझाकरण सुनिश्चित करने के लिए उपाय कर रहे हैं । नायडू ने जोर देकर कहा कि हमें इस समस्या पर भी गंभीरता से विचार करने और प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों के साथ सहमति बनाने की जरूरत है ताकि प्रिंट मीडिया को प्रौद्योगिकी दिग्गजों के बड़े राजस्व से अपना हिस्सा मिल सके।

सच में फ़ेक न्यूज़ मुक्त भाषण देश के नागरिकों की पसंद को प्रभावित करता है? मुख्य रूप से मीडिया कवरेज को एक संतुलित और तटस्थ दृष्टिकोण पर प्रहार करना पड़ता है। मगर फेक न्यूज असत्य सूचना है जिसे समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य अक्सर किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना या विज्ञापन राजस्व के माध्यम से पैसा कमाना होता है। थोड़ा प्रिंट को छोड़कर  डिजिटल मीडिया या सोशल मीडिया में नकली समाचारों का प्रचलन बढ़ गया है। भारत में, नकली समाचारों का प्रसार ज्यादातर राजनीतिक और धार्मिक मामलों के संबंध में हुआ है।हालांकि, कोविद -19 महामारी से संबंधित गलत सूचना भी व्यापक रूप से प्रसारित की गई थी। देश में सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने वाली नकली खबरें एक गंभीर समस्या बन गई हैं।

हालांकि सरकार द्वारा सोशल मीडिया की अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन का उपयोग अक्सर किया जाता है। सरकार जनता को नकली समाचारों के बारे में अधिक जागरूक बनाने के लिए अधिक सार्वजनिक-शिक्षा पहल करने की योजना भी बना रही है। फैक्ट-चेकिंग ने फर्जी खबरों का मुकाबला करने के लिए भारत में तथ्य-जांच वेबसाइटों के निर्माण को बढ़ावा दिया है। लेकिन समाज के इस चौथे स्तम्भ की भी समझना चाहिए कि सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं  को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।

पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा पाया (स्तम्भ) है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाये। अगर किसी भी मीडिया संस्थान की पहली खबर से अगर लोगों के चेहरे पर मुस्कान न आये तो वह कैसी पत्रकारिता ? ख़बरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को भी थोड़े समय रेड लाइट की जरूरत है ताकि वो सुकून से आगे बढ़ सके और लोगों को सही रास्ता दिखा सके।

— डॉ. सत्यवान सौरभ

डॉ. सत्यवान सौरभ

✍ सत्यवान सौरभ, जन्म वर्ष- 1989 सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार ईमेल: [email protected] सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148,01255281381 *अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में समान्तर लेखन....जन्म वर्ष- 1989 प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह ( मात्र 16 साल की उम्र में कक्षा 11th में पढ़ते हुए लिखा ), तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन ! प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर संपादन: प्रयास पाक्षिक सम्मान/ अवार्ड: 1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004 2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005 3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006 4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006 5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007 6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008 7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015 8 आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार 2019 9 इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च एंड रिव्यु में शोध आलेख प्रकाशित, डॉ कुसुम जैन ने सौरभ के लिखे ग्राम्य संस्कृति के आलेखों को बनाया आधार 2020 10 पिछले 20 सालों से सामाजिक कार्यों और जागरूकता से जुडी कई संस्थाओं और संगठनों में अलग-अलग पदों पर सेवा रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 9466526148 (वार्ता) (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 333,Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa, Hisar-Bhiwani (Haryana)-127045 Contact- 9466526148, 01255281381 facebook - https://www.facebook.com/saty.verma333 twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh