आभार तुम्हारा
हे दो हजार बीस !
आभार तुम्हारा ;
हमें परखने के लिए ,
हमें आजमाने के लिए |
गिर गिर के संभलना सिखाने के लिए |
अपनों परायो की पहचान कराने के लिए |
संयम, संकल्प ,आशा ,विश्वास और आस्था की शक्ति बताने के लिए|
हे दो हज़ार बीस !
पूरे वर्ष मचाया तुमने ,
दुनिया में कोहराम |
लेते रहे परीक्षा पे परीक्षा |
कुछ पल खुशी के देकर
पथ पर अनगिनत बिछाए खार |
पर !
हम बचते निकलते रहे |
हे दो हज़ार बीस!
अब जाते-जाते दे जाओ,
इतना आशीर्वाद |
बनी रहे हृदय में स्नेहिल शुद्धता,पवित्रता,दृढ़ता,आस्था ,संयम और विश्वास |
जाते-जाते पूरी करदो ,
मन की यह अभिलाषा |
बस लेजाओ सदा के लिए
कोरोना को अपने साथ |
कभी वापस ना आने की लिए
कभी वापस ना आने की लिए |
हे दो हज़ार बीस !
तुम्हारी दी हुई हर खट्टी,कड़वी कुछ मीठी यादों से,
लेते रहेंगे सीख |
और
जागरूक रह कर ,
अनवरत
सद्कर्म पथ पर बढ़ते रहेंगे हम |थामकर उंगली सन दो हज़ार इक्कीस की |
और
लहरायेंगे परचम खुशहाली का,
चूमेंगे सफलता आ आकाश |
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’