तो दिल को आराम बहुत है
क्यों उल्फत ना काम बहुत है |
सच पर क्यों इल्जाम बहुत है|
झूठे इंसा मौज मनाते ,
सच्चों पर कोहराम बहुत है |
मूरख राज यहा हैं करते ,
ज्ञानी जन गुमनाम बहुत हैं |
कैसा यह गड़बड़ घोटाला ,
अच्छा जो बदनाम बहुत है |
लाखों महफ़िल में क्या जाना
अदब भरी एक शाम बहुत है |
चाहत में चाहत का मिलना,
यह सच्चा ईनाम बहुत है |
नफ़रत जग से गर मिट जाती,
तो मंजिल आसान बहुत है |
‘मृदुल’ दिलों में प्रीत बढ़े बस,
तो दिल को आराम बहुत है |
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’