गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जिन्दगी भर ये उठाता रहा जिस्मों जां।
आदमी मुझको तो मज़दूर नज़र आता है।
आज कल लख्ते जिगर को ये बीमारी क्यों।
पास रह कर भी दिल से दूर नज़र आता है|
लाख करता हो कितनी भी गलतियां बेटा
हर माँ को बेटा अपना कोहिनूर नजर आता है|
नौजवां आज कल हर वक्त कहाँ खोया है ?
अपनी दुनिया से बाहोत दूर नज़र आता है|
हर तरफ़ उसका मुझे नूर नज़र आता है
कितना दिल प्यार में मजबूर नज़र आता है|
मेरी कमज़ोरी का उसको भी पता है शायद
मेरा दुश्मन बडा मशहूर नज़र आता है|
मैं पकड़ना भी जो चाहूँ सुख के लम्हों को|
हर गुज़रता हुआ पल दूर नज़र आता है
होठ सीके तूने ज़ख्म खुले छोड़े क्यों।
थोड़ा सा ज़ख्म भी नासूर नज़र आता है।

जज्बात के तूफ़ान में जज्बात ही साथी है..
बेजान पत्थरों से कभी बात नहीं होती…….

— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]