लघुकथा

कुत्ते की वफादारी

हमीर ने जैसे ही घण्टी बजाई, कुत्ता भोकने लगा । रघुवीर ने कहा – “आ जाओ, डरो मत, ये काटेगा नही ।”

बैठते हुए हमीर ने पूछा – “आपको कुत्ता पालने का शौक कब से हो गया ?”

रघुवीर -“एक दिन पड़ौसी परिवार के साथ हम पिकनिक मनाने गए हुए थे । अचानक पड़ौसी की बेटी टहलते हुए  गायब हो गई । थोड़ी देर में जिधर से उसके चिल्लाने और फिर कुत्ते के भौकने की आवाज आई उधर गए तो देखा एक युवक कराह रहा था जिसे कुत्ते ने दो तीन जगह से काट लिया था ।
मैन पूछा “बेटी, कहीं तुझे तो कुत्ते ने नही काटा ?” वह बोली – “चाचा जी, कुत्ते ने तो वफादारी दिखाई । कुत्ता काट लेता तो इलाज हो जाता, पर इस दरिन्द्रे के काटे का न तो इलाज ही हो पाता और न ही जीने की आस शेष रहती या फिर सिर्फ दरिन्द्रों को सबक सिखाना ही जीवन का एक मात्र ध्येय रह जाता ।”

— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)