खड़ी बोली हिंदी के प्रथम साहित्यकार
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म 9 सितम्बर 1850 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में तथा मृत्यु बीमारी से 6 जनवरी 1885 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में ही हुई । तब राज्य का नाम उत्तर प्रदेश नहीं था । उनकी मृत्यु महज 34 वर्ष 4 माह की आयु में हो गयी ।
वे एकसाथ कवि, कथाकार, लेखक, रंगकर्मी, राष्ट्रवादी पत्रकार थे तथा वे आधुनिक हिंदी (खड़ी बोली) के जनक थे । उनके नाटकों में अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा आदि प्रमुख हैं । भारतेन्दु जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुन्दर नाटक के अनुवाद से होती है।
यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे, किन्तु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया उन्होंने ‘हरिश्चंद्र चन्द्रिका’, ‘कविवचनसुधा’ और ‘बाला बोधिनी’ पत्रिकाओं का संपादन भी किया । वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा वे लेखक, कवि, संपादक, निबंधकार, एवं कुशल वक्ता भी थे।
भारतेन्दु जी ने सिर्फ 34 वर्ष 4 माह की अल्पायु में ही विपुल साहित्य रचे । उन्होंने मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा और इतनी दिशाओं में काम किया कि उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है !