मुक्तक/दोहा

लेखनी

आग उगलती लेखनी,ही लाती परिणाम।
जो बदले युग को सदा,लाये नव आयाम।।

लेखन में जब सत्य हो,परिवर्तन का भाव।
वही लेखनी पूज्य है,जिसमें जनहित-ताव।।

गाये जो बस दर्द,ग़म,पीड़ाओं के गीत।
बने झोंपड़ी,भूख की,जो सच्ची मनमीत।।

वही लेखनी धन्य है,जो असत्य से दूर।
जो रखती संवेदना,वही कलम मशहूर।।

कलम बिके ना,दृढ़ रहे,हों कैसे हालात।
तभी बनेगी बात यह,समझो चोखी बात।।

लेखक की हो लेखनी,बन सकती तलवार।
पत्रकार की भी कलम,रखती पैनी धार।।

सदा लेखनी तेज हो,तो होता यशगान।
क्रांति रचे,उत्थान दे,ला दे नवल विहान।।

रखना हर पल लेखनी,को प्रिय तुम अनमोल।
सत्ताधीशों की सदा,जो खोले नित पोल।।

हिलें ताज अरु तख़्त भी,घबरा जाता काल।
कलम बने हथियार जब,आ जाते भूचाल।।

नमन करे जग नित ‘शरद’,अक्षर जो अविराम।
वही लेखनी प्रिय लगे,जो सचमुच अभिराम।।

— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]