/ विवेचना /
नहीं हूँ मैं
किसी जाति या धर्म दंभी,
मानता हूँ गुरू को
सिर झुकाकर वंदना
दिल से करता हूँ
धन – दौलत व संपत्ति का
नहीं हूँ मैं दंभी,
अहं का अट्टहास नहीं
गुरू को श्रेष्ठ मानकर
चरणों को छूता हूँ
नहीं हूँ मैं
कभी भी विद्या दंभी
पोथी पढ़ी – पढ़ी
जग का पंडित नहीं
समनता के धरातल पर
मनुष्य को मानता हूँ
निज धर्म के विकास में
बुद्ध वचन स्वीकारता हूँ
विचारों की दुनिया में
लोकमंगलकारी भावना
हर कदम पर स्मरण लेता हूँ।