ग़ज़ल
सात रंगों की तरह मिलके बिखर जाते हो
और खुशबू की तहर छू के गुजर जाते हो
मैंने जब भी तुम्हें पलकों पे सजाना चाहा
तुम दबे पाँव तभी दिल में उतर जाते हो
दीप गंगा में सरे-साँझ सिराने वाले
बन्द आँखों में लिये किसको किधर जाते हो
रूप दुनिया का जो बिगड़ा तो बिगड़ता ही गया
एक तुम हो कि अनायास सँवर जाते हो
‘शान्त’ तन्हाई में जब दूर तलक कोई न था
तुम मेरे पास तभी आके ठहर जाते हो
— देवकी नन्दन ‘शान्त’