मरता क्या ना करता
उस दिन राज़ के पापा का फोन आया और उन्होंने राज़ को अगली सुबह ही आने का हुक्म सुना दिया।
जब उसके पापा का फोन आया तो इरा उसके साथ ही थी और उन बाप-बेटों के बीच क्या बातें हो रही हैं उसे समझते देर न लगी ।
राज ने जैसे ही अपने पापा से कल सुबह ही घर पहुंचने का वादा करके बात खत्म की तो इरा थोड़ी उदास और थोड़ी नाराज होते हुए राज के कंधे पर अपना सिर रखकर कहने लगी।
“तो…तो क्या तुम सच में अपने पापा के कहने पर उसी लड़की से शादी करोगे जो उन्होंने पसन्द कर रखी है?
नहीं …नहीं राज मैं नहीं रह पाऊंगी तुम्हारे बिन हाँ राज मैं सच कह रही हूँ ।
तुम किसी और से शादी कर लोगे तो देखना मैं तो मर ही जाऊंगी राज…आई लव यू मैं नहीं जी सकती यार तुम्हारे बिना।”
राज ने इरा के गाल पर प्यार से हल्की सी चपत लगाते हुए कहा
“पागल हुई हो क्या इरा? क्या इतना भी यकीन नहीं तुम्हें मुझ पर व हमारे प्यार पर ? जान मैं कल जाऊंगा और लड़की देखने नहीं बल्कि तुम्हारे बारे उन्हें सब बताने।
तुम क्या सोचती हो कि मैं जी पाऊंगा तुम्हारे बिना तो कभी ऐसा मत सोचना।”
“तुम सच कह रहे हो न राज? ।”
“अरे हाँ बाबा सच कह रहा हूँ ,चलो अब थोड़ा मुस्कुरा दो क्योंकि मैं अपनी जान की इन खूबसूरत आंखों कभी भी आँसू नहीं देखना चाहता।”
राज की बात पर इरा हल्के से मुस्कुरा दी।
राज जैसे ही अपने घर पहुंचा तो उसने देखा कि वहाँ पहले से ही कुछ मेहमान बैठे हुए हैं और उस समझते देर नही लगी कि ये उस लड़की के परिवार वाले ही है जिसका जिक्र कल उसके पापा ने उससे किया था।
राज थोड़ी देर उन सबके पास बैठा रहा।
इधर उधर की बातें होती रही ।
अचानक से उसके पापा ने पूछा कि
“बेटा तुम्हें रश्मि कैसी लगी ?”
“जी…जी पापा ?” उसने हड़बड़ाहट में अपने पापा की तरफ देखते हुए कहा।
“अरे मैं तुमसे रश्मि के बारे में पूछ रहा हूँ और तुम ये जी…जी पापा क्या कर रहे हो”।
राज ने रश्मि की तरफ हल्का सा देखा और फिर हिम्मत करके अपने पापा से कहने लगा।
“पापा मैं एक मिनट आपसे अकेले में बात करना चाहता हूँ” मगर उसके पापा फिर बोल उठे।
“राज तुम्हें जो बात करनी है यहीं करो न सबके सामने और यहां कोई गैर तो नही है सब अपने ही हैं रश्मि इस घर की होने वाली बहु और मिस्टर व मिसेज सिंहानिया हमारे सम्बन्धी।”
राज ने फिर कहा पापा प्लीज मैं आपसे कुछ बहुत जरूरी बात करना चाहता हूँ”।
मगर उसके पापा भी जिद पर अड़े थे कि उस जो कहना है यहीं सबके सामने ही कहे।
राज की माँ की इतनी हिम्मत नही थी कि वो पति की बात टाल सके।
अब राज करे भी तो क्या करे ,उसे लगा था कि वो घर आकर अपने मम्मी पापा को अपने और इरा के बारे में सब बता देगा तो उसके पापा किसी और से उसके रिश्ते की बात करेंगे ही नहीं ,लेकिन यहाँ तो माहौल ही कुछ उल्टा हो गया।
काफी देर सोचने के बाद राज ने सबके सामने ही कह दिया कि “पापा अभी तो मुझे निकलना होगा और मैं परसों आकर आपसे बात करता हूँ क्योंकि पापा अभी तो आपके ही पास टाइम नहीं है मेरी बात तक सुनने का।”
कहकर राज जैसे आया था बिना कुछ खाये-पीये वैसे ही लौट गया।
दूसरे दिन उसने इरा से सब बात बताई ।
“इरा मैं जानता हूँ कि मेरे पापा बहुत ही जिद्दी व लालची किस्म के है और मोटा दहेज मिलेगा उन्हें सिंघानियां अंकल की बेटी से मेरी शादी करके और वो लड़की एक चलता-फिरता ब्यूटीपार्लर है इरा और मुझे जीवन संगिनी चाहिए कोई शोपीस नहीं ।
तुम…तुम मेरा साथ दोगी न इरा” राज ने इरा के हाथों को अपने हाथों से पकड़ते हुए कहा।
“ऐसी बातें क्यों कर रहे हो राज? मैं तो जीवन भर तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ तो फिर ये सवाल क्यूँ? ”
“ये सवाल इसलिए कि मैं चाहता हूँ हम कल ही कोर्ट में जाकर शादी कर लें।”
“हां राज हां तुम जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूँगी।”
इरा राज के फैसले पर बहुत खुश थी आखिर उंसका प्यार उंसका जीवन साथी जो बनने जा रहा था। राज मन ही मन सोच रहा था कि “मैंने सोचा था कि इस बार घर जाकर मम्मी व पापा को अपने और इरा के बारे में सब बता देगा और अपने इस प्यार को वो सबकी खुशी और सहमति से अरेंज्ड मैरिज का ही नाम देगा लेकिन उसके पापा की जिद व गलत फैसले ने उसे लव मैरिज करने पर मजबूर कर दिया था। वो मरता क्या न करता आखिर वो इरा के साथ जन्मों के बन्धन में बाँध ही गया।।
— सविता वर्मा “ग़ज़ल”