किस्सागोई
आपको आज एक दिलचस्प किस्सा सुनाता हूं. हुआ योंकि
एक बार मैं अपनी बहुरिया के साथ शादी के बाद जब वो चंद्रमुखी थी, इलाहाबाद से अपने घर एटा अा रहा था. एटा तक कोई ट्रेन आती नहीं थी अतः टूंडला तक का रिज़र्वेशन था. ट्रेन के द्वारा मैंने यात्राएं नहीं की थी क्योंकि एटा से कोई ट्रेन सुविधा नहीं थी. बस से ही सफर किया करता था. हम लोग अनजाने में कानपुर की बजाए विपरीत तरफ जाने वाली ट्रेन में बैठ गए. जवानी में कहां होश होता है. ट्रेन चल दी नैनी की तरफ . नैनी का पुल निकलते ही हम घबडा गए. टी टी ने हमारा टिकट देखकर बोला आप गलत ट्रेन में बैठ गए हैं. ऐसा करना अगला स्टेशन टीकमगढ़ है वहां से वापिस इलाहाबाद की ट्रेन पकड़ लेना. अब हुआ क्या कि ट्रेन में एक आदमी हमारे सामने वाली ऊपर की बर्थ पर बैठा था उसने हमारी बहुरिया को आंख मार दी. पत्नी ने उस आदमी की हरकत मुझे बताई. उसकी बात सुनकर मैं उठा और उस आदमी के पास जाकर बोला भाई ऐसा करो तुम मेरी बहुरिया के पास बैठ जाओ मैं तुम्हारी सीट पर बैठ जाता हूं. मेरी ससुराल इलाहाबाद है तो तुम रिश्ते में मेरे साले हुए जाओ अपनी बहन के पास बैठ जाओ. भला आदमी उस डिब्बे से ही चला गया.
ऐसा भी होता है.