लघुकथा

खोखला करती दीमक

वीराने से एक जंगल में कई सौ साल पुराना बरगद का एक वृक्ष था। उसकी लम्बी-लम्बी लटाएं धरती को छू रही थी। बूढ़े बरगद में अपार शक्ति थी। उसके भयानक रूप को देखकर लोग उसके पास जाने से डरते थे। बरगद भी बहुत अकड़ कर अपनी मूछों पर ताव देता था कि इस जंगल में कोई भी उसका बाल बांका नहीं कर सकता है। भंयकर गर्मी का समय था। पूरा जंगल तिलमिला रहा था।

एक दीमक आश्रय ढूंढते ढूंढते उस बरगद के पास आई और उस पर अपना घर बना लिया। शक्तिशाली जीवंत बरगद उसका कुछ न कर सका। उस छोटी सी इकलौती दीमक ने वहां अपनी सेना खड़ी कर दी। जो बरगद को अंदर ही अंदर खोखला कर रही थी। बरगद को उसका अहसास तक नहीं हुआ।

एक तरफ तीव्र गर्मी के कारण पानी की कमी और दूसरी तरफ दीमक का प्रकोप। बरगद कमजोर होता जा रहा था। उसके पत्ते झड़कर समाप्त हो रहे थे। भयानक लटाएं सूखने लगी थी। एक समय आया जब भारी भरकम बरगद को छोटी सी दीमक ने खोखला करके अधमरा कर दिया। दीमक ने अंदर ही अंदर  बरगद को खाना शुरू कर दिया था। बरगद का कुछ भाग सूख कर धरती पर गिर पड़ा था। बाकी भी गिरने के कगार पर था।

आसपास का कोई भी वृक्ष उस बरगद की सहायता नहीं कर पा रहा था। सभी उसकी नादानी पर हंस रहे थे। दीमक के स्वभाव से परिचित होकर भी उसने दीमक को क्यों आश्रय दिया ? अब करनी का फल तो स्वयं ही भुगतना होगा।

मनुष्य कितना ही ज्ञानी व शक्तिशाली क्यों न हो ? जब उसे निराशा की दीमक जकड़ लेती है। तब वह धीरे-धीरे अपने वजूद को खोने लगता है। अंदर ही अंदर खोखला होकर बेजान सा दिखाई देता है। एक समय आता है जब वह मानसिक और शारीरिक रूप से इतना कमजोर हो जाता है कि वह अपनी सुध-बुध खोकर बेचैनी से घिरा रहता है। चारों तरफ से हताशा के बादल उसको घेरे रहते हैं। निराशा की दीमक उसको विक्षिप्त बना देती है। उसकी जीवनी शक्ति कमजोर  पड़ने लगती है। लोग भी साथ छोड़ने लगते हैं। अपेक्षाओं के पूर्ण न होने से उत्पन्न दुख से निराशा का जन्म होता है। विवेकी मनुष्य असफलता को चुनौती मानकर पुन: प्रयत्‍‌न करते हैं जबकि विवेकहीन मनुष्य निराशा से भर उठते हैं। निराशा मूर्खता का पर्याय है।

मनुष्य इस धरती पर सबसे बुद्धिमान व शक्ति संपन्न जीव है। जब उसे यह ज्ञात है कि इस निराशा की दीमक का परिणाम क्या होता है? तो उसे इस दीमक से सचेत रहने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए। परिस्थितियां चाहे कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हो। अपने भुजबल को नहीं भूलना चाहिए।

— निशा नंदिनी भारतीय

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]