गजल
दुःख जिसके ज़माने के अदंर है
वो ही तो भोले शंकर है
आये कैसे बहार उसमें
जिसकी ये ज़मीं ही बंजर है
देख ले बिछड़कर नहीं मरा हूं मैं
अब ये हालात कितने बेहतर है।
थोड़े में ही भर ही आते हैं।
मेरे आंसू ही अब समंदर है
दुःख जिसके ज़माने के अदंर है
वो ही तो भोले शंकर है
आये कैसे बहार उसमें
जिसकी ये ज़मीं ही बंजर है
देख ले बिछड़कर नहीं मरा हूं मैं
अब ये हालात कितने बेहतर है।
थोड़े में ही भर ही आते हैं।
मेरे आंसू ही अब समंदर है