मुक्तक/दोहा मुक्तक डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन 10/01/2021 देखती हूं खुद का चेहरा, जब कभी दर्पण में मैं, बस तू ही दिखता मुझे, निहारती हूं खुद को मैं। क्या करूं कान्हा बता, सखियां मुझको टोकती, तू रहा तू ही तू, तुझमें रमकर मैं रह न सकी मैं। — अ कीर्ति वर्द्धन