गज़ल
लब पे आहें नहीं और आँख में आँसू भी नहीं
दिन करार से कटते हों मगर यूँ भी नहीं
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तुझे रोकूँ भी तो किस हक से मुझे तू ही बता
तू मेरा दोस्त भी नहीं है और अदू भी नहीं
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कुछ मुझे भी कर दिया हालात ने पत्थर
कुछ तेरी बात में वो पहले सा जादू भी नहीं
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माह-ओ-अंजुम थे पहरेदार कभी रातों के
मेरे हिस्से में मगर आज एक जुगनू भी नहीं
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डरता भी हूँ राज़ ए इश्क न खुल जाए कहीं
मगर करूँ मैं क्या जज़्बात पे काबू भी नहीं
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बुरा नहीं था पर बुराई से लड़ भी न सका
अगर रावण नहीं हूँ मैं तो जटायु भी नहीं
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।