ग़ज़ल
मत बैरी जग को बतलाना।
जब शाम ढले तब आ जाना।
नाम वतन का यार डुबाना।
इससे तो अच्छा मर जाना।
शायद है कोरोना कारण,
चेहरों पर इक भय अंजाना।
लड़ना भिड़ना ठीक नहीं अब,
पहले दुश्मन को समझाना।
हम सबसे क्या कुछ कहता है,
शहरी पौधों का मुरझाना।
— हमीद कानपुरी