सामाजिक

पतंग सी है ज़िंदगी

हम इंसानों की जिह्वा तरंगी, चंचल और ज़िंदगी के हर रंग को जीने की चाह रखने वाली है, किसे पसंद नहीं रंग बिरंगी इन्द्रधनुषी रंग फिर वो चाहे पतंग के हो या ज़िंदगी के। महज़ हल्के कागज़ से बनी पतंग और प्रवाल सी ज़िंदगी में कितनी समानता है, जब पतंग उड़ान भरती छू रही होती है आसमान का सीना तब हर तरफ़ से वाह-वाही का शोर सुनाई देता है। और जब कट कर गिरती है औंधे मुँह धरती पर तब भी शोर सुनाई देता है, बेशक लूटने वालों का।
वैसे की जब इंसान छू रहा होता है सफ़लता की बुलंदियों को तब हर कोई तारिफ़ों के पुल बाँधते वाह-वाही करते है। पर जैसे ही उसी इंसान का बुरा वक्त आता है गलतीयाँ गिनाने वालों का तांता लगता है सलाहों का शोर सुनाई देता है। पतंग का पूरा वजूद मजबूत धागे से जुड़ा होता है, जितना मजबूत धागा उतना कटने का डर कम होता है। वैसे ही हमारी नींव परिवार है, हमारे अपनें है। कितना भी ऊँचा उड़ ले, या उड़ते-उड़ते गिरे परिवार संग रहेगा तो हर संघर्ष का सामना बखूबी कर पाएंगे। उम्मीदों के धागे संग ख़्वाहिशों की पतंग जोड़कर ज़िंदगी के हर रंग को जीने वाला इंसान मस्त मौला कहलाता है। हवा के खिलाफ़ बहना जो जानें उनके स्वप्न कभी क्षीण नहीं होंगे। संघर्ष के बादलों को तार-तार वही कर पाता है जो ऊँची उड़ान भरने का हौसला रखता है।
पर ये मत भूलो की चाहे कितना भी ऊँची उड़ा लें अपनी ख़्वाहिशों की पतंग उसकी डोर उस अनदेखी अन्जानी शक्ति के हाथ में है। कब कट जाए कोई नहीं जानता। ज़िंदगी हमारी चाहे कितनी भी रंगीन फ़िज़ाओं में क्यूँ न कटी हो जैसे पतंग का अंजाम कूड़े का ढ़ेर या इलेक्ट्रिक का खंभा या तार होता है, वैसे ही इंसान का अंजाम राख के ढ़ेर में बदलना है। संक्रांति के पर्व पर पतंग उड़ाते ज़रा सी तुलना करके देखेंगे तो मालूम होगा हमारी ज़िंदगी भी पतंग सी ही है। जब तक किस्मत और लकीरों की हवा साथ देगी हमें उड़ने से कोई नहीं रोक सकता। पर जैसे ही हवा का रुख़ मूड़ा पंचतत्व में विलीन होना तय है ख़ाक़ में तब्दील होते। बिता अवसर लौटकर नहीं आता, मन जीवन भर पछताएगा कि था वक्त जब हाथ में कुछ कर न सका। गलतियों से पेंच लड़ाकर बेवक्त ज़िंदगी की पतंग को बेरंग होते कभी कटने मत दो, जब तक उम्र का फ़लक साथ दे उड़ा लो अपने मन की इंद्रधनुषी पतंग ज़िंदगी के आसमान में रंगबिरंगी सपनों के साथ। पर अपने जीवन पतंग की डोर किसी ओरों के हाथों मत सौंपे। खुद ही एक सिरा सकारात्मकता की ऊँगली की गिरह से बाँधकर रखिए जब चाहे ऊँची उड़ान भरिए, जब चाहे ढ़ील दें और जब चाहे पैच लड़ाईये ताकि कोई कमज़ोर धागा आपके हौसलों के मजबूत धागे को काटने की हिम्मत ना करें।
— भावना ठाकर

*भावना ठाकर

बेंगलोर