सड़क या नारी
पहले मुझे बनाते हो
और …
जब बन जाती हूं
मंजिल तक
पहुंचाने के लायक …
फिर जी भर के मुझे सताते हो!
रोंदते हो पांव तले,
सिगरट तक मुझ पर बुझाते हो!
रफ़्तार से तुम्हारी
डर जाती हूं
घुट घुट कर में भी
मर जाती हूं
पर मौत भी मेरी,
कहां तुम्हें पसंद है?
उस पर पैबंद लगवाते हो!
नारी हूं या मैं कोई सड़क हूं
समझ तुम यह भी न पाते हो
और इंसान फिर भी तुम कहलाते हो??
अंजु गुप्ता