अकबका
मैं भी अकबका कर बाहर निकलता हूँ कि अचानक ही आखिर क्या हो गया ? मैंने जब इस छोटी-सी बात को जाना, तो माँ से कहा, ‘यह क्या माँ ! आज उपवास में हो, श्रीकृष्ण की श्रद्धा और भक्ति में लीन ! फिर मुँह से गाली निकाल रही हो, वह भी भद्दी-भद्दी । कम से कम उसे तो आज बख्श देनी चाहिए थी ।’
यह सुन माँ उल्टे मुझपर उबल पड़ी । मैंने भी प्रत्युत्तर में माँ को कह दिया, ”आपकी यह पूजा तो ‘मुँह में राम, बगल में छुरी’ लिए है ।”
लेकिन माँ चुप नहीं रही, उन्होंने कहा, ”तुम्हारी यह कहावत आज के प्रसंग में लागू नहीं हो सकती, कैसे कवि हो तुम ! तुकबंदी भी नहीं कर सकता ! कहावत सुनाना ही है, तो यह सुनाओ, ‘मुँह में कृष्ण, बगल में बकरी’ !”