एक हिंदी समालोचक और उनकी समालोचना
हिंदी समालोचक ‘खगेन्द्र ठाकुर’ का अवसान ! दिनांक- 13 जनवरी 2020 को हमने बिहार और झारखंड के रहवासी डॉ. खगेन्द्र ठाकुर को खोया, जो हिंदी के वरेण्य समालोचक थे । मुझसे उनके व्यक्तिगत संबंध था। उनसे कई-कई बार कई-कई मित्रों के साथ भेंट हुई है।
जन्म 9 सितंबर 1937 को मालिनी, गोड्डा (अभी झारखंड में) में हुआ था, जो अत्यंत पिछड़ी जाति (नाई) से थे, किन्तु सवर्णी हिंदी समुदाय के छक्के छुड़ाते रहे…. वे वाम विचारधारा से जुड़े रहे !
उनकी रचनाओं में विकल्प की प्रक्रिया; आज का वैचारिक संघर्ष मार्क्सवाद; आलोचना के बहाने; समय, समाज व मनुष्य, कविता का वर्तमान, छायावादी काव्य भाषा का विवेचना, दिव्या का सौंदर्य, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ : व्यक्तित्व और कृतित्व (आलोचना), रक्त कमल परती पर (कविता संकलन), देह धरे को दंड; ईश्वर से भेंटवार्ता (व्यंग्य)। उन्हें बारम्बार सादर नमन और अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!