गुरु परम्परा
बाबा साहब ने महामना ज्योतिबा फुले को अपना गुरु माना, लेकिन फुले के आर्य आक्रमण सिद्धांत को नकार दिए ।
मान्यवर कांशीराम ने बाबा साहब को आदर्श बनाया, लेकिन उनसे हटकर जातियों के उच्छेद जैसे दुरूह कार्य को हाथ नहीं लगाया।
इसी तरह आने वालीं पीढ़ियाँ हमेशा कुछ न कुछ नया करती रहेंगी, इसलिए यह सोचना कि हमारे फलां महापुरुष ने तो यह कहा था करने को या वो कहा था करने को….
ये सारी बातें आपको लकीर का फ़क़ीर बनाता है ।
अपने महापुरुषों से सीख लेते हुए समय के साथ खुद को परिवर्तित करते हुए निरंतर नए रास्तों की तलाश कीजिए ।
यही सही तरीका होता है। पूजा तो पूजा होती है, फिर गरीब भारत में ‘पंडाल’ पर करोड़ों खर्च क्यों? वह भी कुछ दिनों के बाद फिर उजाड़ !
जबकि एक साल के उन चंदों से वहाँ स्थायी तौर पर मन्दिर और छत हो जाते ! करोड़ों रुपये के क्षणभंगुर ‘पंडाल’ को लेकर कोई इसे सुस्पष्ट करेंगे!