छंद
शीत प्रकोप धुंध के कारण
त्राहि त्राहि जब मची धरा पर
झरने पोखर ताल जमे सब
जीव जन्तु काँपे थर थर थर
दंभ शीत का बढ़ते बढ़ते
पार गया जब अपनी हद से
तब उसको औकात बताने
वक्र मार्ग पर चले दिवाकर
— सतीश बंसल
शीत प्रकोप धुंध के कारण
त्राहि त्राहि जब मची धरा पर
झरने पोखर ताल जमे सब
जीव जन्तु काँपे थर थर थर
दंभ शीत का बढ़ते बढ़ते
पार गया जब अपनी हद से
तब उसको औकात बताने
वक्र मार्ग पर चले दिवाकर
— सतीश बंसल