कुंडलिया
“कुंडलिया”
गुड़तिल मिलकर खाइये, सुंदर बने विचार
स्वाद भरी खिचड़ी भली, मकर महा त्यौहार
मकर महा त्यौहार, पतंगा उड़े गगन में
क्यारी महके फूल, सुबासित पवन चमन में
कह ‘गौतम’ कविराज, रहो रे घर में हिलमिल
सीख दे रहे धान, मिलाकर रखना गुड़तिल।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी