दोहा गीतिका
“दोहा गीतिका”
क्यों मानव से भी बड़ा, होता चला विकास
कुछ सोएं मरुभूमि पर, कुछ का घर आकाश
क्या गरीब खाता नहीं, पिचका उसका पेट
कुछ क्यों होटल खेलते, बावन पता ताश।।
बैंक व्याज देता नहीं, कर्ज है कमरतोड़
मध्यमवर्गी खिन्न है, क्या खाएं घर घास।।
वोट बहुत है कीमती, सस्ता क्यों इंसान
क्यों कुर्सी वर माँगती, जनता से विश्वास।।
आये दिन घटना घटे, गिरा मुक्ति का घाम
बलात्कार क्यों हो रहा, क्यों पापी है खास।।
भेद न जनता कर रही, हिन्दू मुस्लिम एक
हर चुनाव में क्यों दिखे, जाति पाँति का फाँस।।
मूर्ख बनाना छोड़ दो, करो सनातन काम
हे नेता हे कलियुगी, क्यों करते उपहास।।
प्रभु के घर में देर है, तुम करते अंधेर
रावण की गति देख लें, क्यों सिय से परिहास।।
‘गौतम’ डर से गल रहीं, अपने घर में नारि
सबला है अबला नहीं, क्यों हो मही निराश।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी