हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – नेहरू जी की आत्मा

गहरी निद्रा में सो रहा था, अचानक एक चमकदार किरण प्रकट होकर मुझे झकझोर ने लगा, सामने देखा सफेद लिबास में चाचा नेहरू मुस्कुरा रहे थे!
मेरा शरीर डरकर ठंडा पड़ने लगा सांसें उखड़ने लगी फिर मन कड़ा करके पूछा”और चाचाजी इधर कैसे आना हुआ, चाचा नेहरू बोले”अरे शाम को आपने ही दिल से याद किया था!
मैंने कब याद किया, आपको वर्ष भर में 2 बार ही याद किया जाता है एक आपके जन्मदिन और दूसरा 27 मई  फिलहाल सत्ता दल आपको रोज-रोज याद करके किसी तरह से अपनी नैया को पार लगा रही है, दिमाग पर जोर देने पर ध्यान आ गया,
वोह आज विपक्ष की आलोचना में लिखी गई लंबी चौड़ी लेख में दो शब्द चाचा नेहरू जी के भी तारीफ में लिख दिया!
“अरे चाचाजी गरीब लेखक हूँ, निहायत दरिद्र हूं, कोई काम धंधा नहीं है, बेरोजगार हूं, बस कलम से किसी तरीके से काम चलता है अगर सत्ता के खिलाफ लिखूंगा तो सत्ता के कोप भाजन का शिकार होना पड़ेगा! इसीलिए थोड़ा बहुत कलम से चमचागिरी कर दिया जाता है, सत्ता पक्ष की तारीफ में फिलहाल कांग्रेस की सरकार आएगी आपका भी तारीफ खूब जोर-शोर से करूंगा!
चाचा नेहरू मुस्कुरा कर बोले” ज्यादा सफाई मत दो मुझे इस बात का कोई गम नहीं है, मेरे बारे में कौन क्या लिखता और क्या कहता है. कसम से मैंने जीते जी कभी किसी का दिल ना दुखाया, आज मुझे बेहद खुशी हो रही कि मैं किसी न किसी तरीके से सबके काम आ रहा हूं! आज भी कांग्रेस का तारणहार हूं, सत्ता के हर नाकामियों का ठीकरा सर पर लेते-लेते थक गया हूं!
” चाचा जी समय-समय की बात है,समय बहुत बलवान होता है! फिलहाल आपकी सेवा में क्या कर सकता हूं? कुछ चाय-पानी हो जाये!
चाचाजी बोले ” अरे अब काया त्याग चुका हूँ, ये मेरी अंतरात्मा बस आपके चाय और पानी कहने मात्र से तृप्त हो गई!
“अरे चाचा जी एक सेल्फी हो जाता, अचानक चाचा जी अंतर्ध्यान हो गए, अब तो मेरी दशा और दिशा मेरे रग-रग में फड़फड़ाने लगी, आज चाचा जी नेहरू जी का साक्षात स्वप्न में दर्शन हो गया, मेरी भावनाएं उछल-उछल कर तांडव करने लगा! अब तो मुझे अपने कलम पर अभिमान हो गया
मेरी कलम की ताकत ऊपर से चाचा जी की आत्मा को अपने समकक्ष खड़ा कर दिया, नींद टूट गई अलार्म बज रहा था. सपना भी टूट गया और घमंड!
— अभिषेक राज शर्मा

अभिषेक राज शर्मा

कवि अभिषेक राज शर्मा जौनपुर (उप्र०) मो. 8115130965 ईमेल [email protected] [email protected]