स्वामी विवेकानंद के सपनों को साकार करने की आवश्यकता
स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हमारे देश में मनाया जाता है। वो युवाओं के लिए सच्चे आदर्श हैं। वे पीढ़ियों-पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं और रहेंगे। महान व्यक्तित्व के धनी लोगों के जीवन से हरपल और हरदम कुछ न कुछ सीखा जा सकता है, लेकिन उनके विचारों को जीवन में कैसे उतारे यह हमें नहीं पता होता। भारत के महानतम समाज सुधारक, विचारक और दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का जन्म १२ जनवरी, १८६३ को कलकत्ता में हुआ था। वह अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय एवं आर्थिक समृद्धि के प्रबल समर्थक थे। स्वामी विवेकानंद के अनुसार ”लोकतंत्र में पूजा जनता की होनी चाहिए। क्योंकि दुनिया में जितने भी पशु−पक्षी तथा मानव हैं वे सभी परमात्मा के अंश हैं।” स्वामी जी ने युवाओं को जीवन का उच्चतम सफलता का अचूक मंत्र इस विचार के रूप में दिया था− ”उठो, जागो और तब तक मत रूको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।”
एक व्याख्यान में स्वामी जी ने कहा कि जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को कृतध्न समझता हूं, जो उनके बल पर शिक्षित बना और उनकी ओर ध्यान नहीं देता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इन गरीबों, अनपढ़ों, अज्ञानियों एवं दुखियों को ही अपना भगवान मानो। स्मरण रखो, इनकी सेवा ही तुम्हारा परम धर्म है। स्वामी जी आगे अपने सम्बोधन में कहते हैं
दुनिया को धर्म और अध्यात्म देना हिन्दुओं का ईश्वर प्रदत्त कार्य है। जो इस धर्म की जान है। यदि हमने अपने अज्ञान से इसे गंवाया तो कोई भी हमें बचा नहीं पाएगा। और यदि हमने जान से भी अधिक इसका जतन किया तो कोई हमारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगा। ग्रीक रोमन सभ्यता आज कहां है? उल्टे सैकड़ों साल विदेशी सत्ता तले,अत्याचार और जुल्म तले दबी इस जमीं पर हिन्दू सभ्यता आज भी जिंदा क्यों है? इसके उदारवादी होने से हमेशा इसका मजाक ही उड़ाया जाता है, लेकिन विश्वास कीजिए हमने किसी पर हमला नहीं किया और किसी को जीता भी नहीं। लेकिन फिर भी हम जिंदा हैं क्योंकि धर्म,आध्यात्मिकता का प्राण सहिष्णुता शक्ति की वजह से है। स्वामी विवेकानंद जी ने तीन भविष्यवाणी की थी। सर्वप्रथम १८९० के दशक में उन्होंने कहा था भारत अकल्पनीय परिस्थितियों के बीच अगले ५० वर्षों में ही स्वाधीन हो जाएगा। जब उन्होंने यह बात कही तब कुछ लोगों ने इस पर ध्यान दिया। उस समय ऐसा होने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही थी। अधिकांश लोग अंग्रेजों द्वारा शिक्षित होकर संतुष्ट थे। उन दिनों लोगों में शायद ही कोई राजनीतिक चेतना दिखाई पड़ती थी। उन्हें राजनीतिक स्वाधीनता की कोई धारणा नहीं थी। ऐसी पृष्ठभूमि में स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की कि भारत अगले ५० वर्षों में स्वाधीन हो जाएगा और यह सत्य सिद्ध दी हुई। स्वामी विवेकानंद इतिहास के अच्छे अध्येता थे और ऐतिहासिक शक्तियों के विषय में उनकी अंतर्दृष्टि बहुत गहरी थी। विवेकानंद ने ही एक और भविष्यवाणी की थी जिसका सत्य सिद्ध होना शेष है। उन्होंने कहा था भारत एक बार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान उचाईयों पर उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत का विश्व गुरु बनना केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व के हित में हैं। विवेकानंद ने कहा समाज का नेतृत्व चाहे विद्या बल से प्राप्त हुआ हो चाहे बाहुबल से, पर शक्ति का आधार जनता ही होती है। उनका मानना था कि प्रजा से शासक वर्ग जितना ही अलग रहेगा, वह उतना ही दुर्बल होगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि यथार्थ भारत झोपड़ी में बसता है, गांव में बसता है। इसलिए भारत की उन्नति भी झोपड़ी और गांव में रहने वाले आम जनता की प्रगति पर निर्भर है। हमारा पहला कर्तव्य दीनहीन, निर्धन, निरक्षर, किसानों तथा श्रमिकों के चिंतन का है। उनके लिए सब करने के उपरांत ही संबंधों की बारी आने चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा है अतीत से ही भविष्य बनता है। अत: यथासंभव अतीत की ओर देखो, पीछे जो चरण चिरंतन वह रहा है भर पेट उसका जल पियो और उसके बाद सामने देखो और भारत को उज्जवल तक पहले से अधिक ऊंचा उठाओ। हमारे पूर्वज महान थे। हम भारत के गौरवशाली अतीत का जितना ही अध्ययन करेंगे हमारा भविष्य उतना ही उज्जवल होगा। भारत में श्रीराम, कृष्ण, महावीर, हनुमान तथा श्रीरामकृष्ण जैसे अनेक इष्ट और महापुरुषों के आदर्श उपस्थित हैं। हमारे देश भारत सहित समस्त विश्व में बढ़ती अराजकता, हिंसा, मनो-उन्माद, आतंकवाद, नशाखोरी तथा पर्यावरण क्षरण आदि समस्याओं के कारण समस्त मानव जाति को अपनी सभ्यता और संस्कृति के समक्ष अस्तित्व का संकट दिखाई दे रहा है। वास्तव में आँखें बंद रखे हुए मानव ने अपने सांस्कृतिक मूल्यों की अवहेलना करते हुए पश्चिमीकरण के रास्ते जो विकास की यात्रा तय की है, उसके कारण आज हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता प्रतीत हो रही है। विकास की इस यात्रा में मनुष्य प्रजाति ने शिक्षा प्रणाली के मानवीय आधारभूत मूल्यों की अनदेखी की। वास्तव में शिक्षा मनुष्य को मानव बनाने की प्रक्रिया है या यह कहा जाये कि मनुष्य को मानव बनाने का दायित्व शिक्षा पर है। शिक्षा की व्यवस्थागत प्रक्रिया से निकलकर ही बालक एक वयस्क के रूप में समाज में अपना स्थान और स्तर निर्धारित करता है। व्यक्तित्व और समाज की आवश्यकता के अनुसार बालक को शिक्षित और सभ्य बनाने का अहम कार्य शिक्षा व्यवस्था से ही अपेक्षित होता है। स्वामी विवेकानंद जी अपने सम्पूर्ण जीवन की यात्रा में भारत वर्ष की पीड़ा को गहनता से अध्ययन कर उसके निराकरण की प्रक्रिया भी बताई है। इस युवा दिवस के अवसर पर स्वामी जी के विचारों से प्रेरणा लेकर नवयुवकों को देश, समाज, राष्ट्र के उत्कर्ष के लिए कार्य करना चाहिए। ससक्त भारत, स्वावलंबी भारत, समतायुक्त भारत का निर्माण हो तो आइये स्वामी जी के इन विचारों के साथ आगे बड़ें और अपने लक्ष्य को निर्धारित करें।