और क्या होंगे?
देश में सबसे अधिक अभियंता पैदा करने वाले बिहार के गाँधी सेतु पर पिछले 27 सालों से मरम्मत का काम चल रहा है। भाई, हम पुल का मरम्मत कर रहें हैं या नया पुल बना रहे हैं? इस पुल के मरम्मत पर हम जितना खर्च कर चुके हैं- उतने में और कम समय में नया और बेहतर पुल बनाया जा सकता था। पूरी गंगा पर गिनती के 5 पुल हैं बिहार मे। उनमें से एक गाँधी सेतु आखिरी सांसें ले रहा है, बस किसी दुर्घटना की प्रतीक्षा है, भारत भाग्य-विधाताओं को। क्या पैसे की कमी है या थी? नहीं। अगर पैसे की कमी होती तो जगन्नाथ मिश्र से लेकर लालू प्रसाद तक के पास लूटने के लिये पैसा नहीं होता खजाने में। बिहार के सिनेमा घर, पेट्रोल पम्प और नये बनते सड़कों की ठेकेदारी में लगी काली कमाई की आलिशान निशानी आपको हर बिहारी शहर में देखने को मिलेगी। हर शहर के नेता-मंत्री का राजमहल आपको उनके दारिद्र्य का भान करायेगा। जहाँ आज भी जेलों से सरकारें चलायी जा सकती हो। जेल में बन्द कोई भी जननायक आपको संदेश भेज कर बुला लेता हो और अपनी बिन माँगी कृपा आप पर थोप देता हो। दूसरी तरफ उसी प्रदेश में मजदूरों का पलायन करता हुजूम, बसों और ट्रेनों में बकरियों के झुंड की तरह ठूँस दिया जाता हो, और हमें सब सामान्य लगता हो। तो क्षमा कीजियेगा हम महाराष्ट्र और गुजरात ही नहीं बहुत जल्दी दिल्ली और दूसरे प्रदेशों में भी पीटते मिलेंगे। बुरा लग रहा होगा, पर यही वो विकास है, जिसे ओढ़कर नीतीश कुमार विकास पुरुष बने बैठे हैं। वाल्मीकि, जनक, याज्ञवल्य, चंद्रगुप्त, अशोक, दिनकर और बेनीपुरी पर घमंड करने वाले हम बिहारी कब तक इतिहास को सीने से चिपका कर इतराते रहेंगे। प्रश्न ये नहीं की हम क्या थे? प्रश्न ये है की हम क्या हैं? और क्या होंगे?