कविता – खुशबू तेरे प्यार की
अवचेतन हृदय व्योम पर,
बिखरी है यत्र सर्वत्र,
तुम्हारे प्रेम की सुरभि।
सुरभि जिसमें समाहित है,
अपनत्व का अथाह सौरभ।
शब्दहीन मौन संवाद,
विस्मृत कर देता है,
समस्त पीड़ाओं और अवसादों को।
प्रति क्षण रचता रहता है,
एक अनावृत प्रेम अध्याय।
प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए
खींच ली जाती हैं कुछ रेखाएं
जो संकुचित दायरे में बांध देती हैं
सीमाहीन प्रेम को।
प्रेम की पूर्णता के लिए,
संभवतः आवश्यक है
इसी सीमित दायरे में,
प्रेम सुगंधि का बिखर जाना।
— कल्पना सिंह