तुम बहरे हो क्या ?
दादाजी कहा करते थे,
‘मनिहारी श्मशान घाट’ की
धूल-धूसरित “जिलेबी” खाने से
भूत-प्रेतों से दोस्ती
‘सीधे’ हो जाती है !
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अखबारी कागज पर खाने से
प्रिंटिंग स्याही पेट में जाकर
उत्पात मचाते हैं
और
बवासीर आदि के रूप में
बाहर निकलते हैं ?
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कल जो ‘लाई’ (लाड़ू) खाये थे,
अभी तक पचा नहीं है !
माँ से कह दिहिस है,
आज सिर्फ़ सब्ज़ी का
‘झोड़’ सुरकेंगे ?
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जिसने प्रसव- वेदना झेलकर
और मुझे खूब रुलाकर,
किन्तु पिता और परिवार को
मुस्कराने का अवसर प्रदान की!
प्यारी माँ को प्रभातीय नमन….
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त्रिभुज के तीनों कोण का योग
180° होता है,
पर ‘इलेक्ट्रिक आयरन’ का योग
180° नहीं होता !
यह इलेक्ट्रिक आयरन ही
‘नियोजित शिक्षक’ है?
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तुम
बहरे हो क्या ?
सर
कार !
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रोपने के लिए क्यों ?
पर कोई रोप के ही
क्या उखाड़ पाए हैं ?