कविता

अब और नहीं

सिमटी -सिमटी जिंदगी में बसर ।
अब और नहीं …अब और नहीं।
 ठहरी -ठहरी राहों का सफ़र।
 अब और नहीं ..अब और नहीं।
बांध ले अपनी हिम्मत को ,
तिल -तिल कर मरना ।
अब और नहीं …अब और नहीं।
सिमटी -सिमटी राहों में बसर।
अब और नहीं ..अब और नहीं।
आशाओं के दिए जला ले,
 निराशा को दूर भगा ले ,
 वक्त बदलेगा ।
बदलना होगा ……वक्त को।
 जीवन का क्रूर प्रहास।
अब और नहीं …अब और नहीं।
तुम अकेले नहीं ।
साथ यह धरा -गगन हैं।
मिलेगी हर… राह पर मंजिलें।
किस राह पर चलूं….यह सोचना।
अब और नहीं …अब और नहीं।
तुझको अपने हाथों  से,
बदलनी है किस्मत अपनी।
बदलेगी ……यह लकीरें।
इस इंतजार में गुजर ।।
अब और नहीं ..अब और नहीं।
गमों से भरें,
जिंदगी में कल्पनाओं के भंवर।
अब और नहीं …अब और नहीं।।
 जिंदगी को जीना है..
 झेलना तो नहीं।
जिंदगी से टकराव।
अब और नहीं ..अब और नहीं।
परम सत्य है जो ,
उस सत्य को पाना है ।
धर्मो की जकड़ ।
अब और नहीं.. अब और नहीं।
अपनी राहे तुम बनाओ खुद।
 खोखले आदर्शों का चलन ।
अब और नहीं.. अब और नहीं।
— प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- [email protected]