सामाजिक

पिंजरा

जब एक नन्ही  चिड़िया तिनका-तिनका जोड़कर अपना घोंसला बनाती है बड़े अरमान और  विश्वास से उसे सजाती है और सोचती है  इसमे वोऔर उसके बच्चे सुरक्षित रहेगे खुशी मे वो भूल जाती है घोंसला तो उसका है जिसे उसने कड़ी मेहनत और लगन से बनाया है पर वो पेड़ या वो घर उसका नही जहां उसने अपना घोंसला बनाया है।
उसका मालिक तो कोई और है फिर वो घोंसला उसका कैसे  हुआ उस इंसान का जब दिल करेगा उसे बेघर कर देगा, तबाह कर देगा उसके अरमानों  का आशियाना, बिखेर देगा उसके सपनों  के घोंसले को एक मगरूर हवा का झोंका तोड़ देगा उस डाली को जिस पर जहाँ बसा रखा उस नन्हीं चिड़िया ने।
उम्मीद से भरी उसकी आंखे किससे बयां करे अपने दर्द को वो जगह कहाँ जहाँ वो निश्चिंत होकर अपना घोंसला बना सके जिसे वो अपना कह सके जिस पर सिर्फ उसका हक हो किसी और का नही जहाँ वो निडर होकर रह सके कोई न तोड़ सके उसके अरमानो का घोंसला।
हममे से कई लोग अपनी खुशी के लिए उसे पाल लेते है घर मे रख लेते है पर घर नही देते, देते है तो पिंजरा जहाँ वो सांसे तो ले पर चहक न सके, परो के होते हुए भी उड़ न सके पर कटेे परिंदे की तरह तड़पती  रहे।
अगर हमारे दिलो मे इतनी जगह नही की उसे अपने घर मे घोंसला बनाने दे तो कृपया उसेे कैद भी न करे उड़ जाने दो जीने दो उसे क्यूँ अपनी खुशियों  के लिए खरीद लेते हो उसके जीवन को लिख देते हो अपना नाम उसकी जिन्दगी पर मोहताज बना देते हो उसकी हर सांस को छीन लेते हो उसकी सारी खुशियां।
क्या कभी लौटा सकोगे उसके जीवन को ??
जिसको कैद कर लेते हो अपने स्वार्थ के लिए कैद मे होकर भी वो तुम्हे मुस्कुराहटे देती है  उसकी तड़प पर तुम मुस्कुरातें हो जब वो आजाद होने के लिए तड़पती है तो तुम खुश होते हो कहते हो पाले हो मगर वास्तव मे तो कैद कर रखा है।
कैद मे कोई खुश नही रह सकता एक आजाद परिंदा चहकता है गुनगुनाता है जिसे देख कर सब मुस्कुराते है क्या वो भी तुम्हे देखकर खुश रह पाता है सहम कर एक कोने मे कही बैठ तो नही जाता है।
मत कैद करो उसे सिर्फ वो कैद नही होता उसके साथ उसकी सांसे उसका चहकना, उछलना और उसकी वो स्वछन्द उड़ान  सब कैद हो जाता है बिछड़ जाते है उसके नन्हें बच्चें या उन बच्चों से उनकी माँ उजड़ जाता है उनके अरमानों  का घोंसला तड़प कर रह जाते है कैद हो कर कुछ शेष नही रह जाता है।  रह जाता है उनके जीवन मे तो बस वो “पिंजरा” जिसे तुम देते हो अपने स्वार्थ के लिए !!
— प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार लखनऊ (उत्तर प्रदेश) व्हाट्सएप - 8564873029 मेल :- [email protected]