सलवटें
सलवटें जब चादरों में उभर आती है
तो लगता है
रात भर किसी ने
बेचैनी में करवटें बदली है।
सलवटें जब किसी के
कपड़ो में झलक जाती है
तो लगता है
बेचारा दीन-हीन गरीब
जिसकी हालत नहीं बदली है।
सलवटें जब किसी माथे पर
सिमट आती है
तो लगता है
यही उसकी जीवन की कहानी है
जो उसकी जवानी को
बुढ़ापे में बदली है।
— डॉ. शैल चन्द्रा