उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में
तेरी खुशी में आज मगन में।
उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।
बचपन तेरा घुटकर बीता।
मजबूरी में दूध था पीता।
बंधन इतने किए आरोपित,
साहस और उत्साह है रीता।
छोड़ रहा अब खुले चमन में।
उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।
बचपन के दिन लौट न पाएं।
बचा नहीं कुछ गाना गाएं।
इच्छा तेरी दबी थी मन की,
समझ न आता क्यूँ हरषाएं।
समय बीत गया सिर्फ दमन में।
उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।
समय बीत गया उड़ गए तोते।
रोना आता पर नहीं हैं रोते।
पास हमारे नहीं शेष कुछ,
भव सागर में लगा तू गोते।
आहुति दी है खुद की हवन में।
उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।
तू अब अपनी खुशियाँ जी ले।
जीवन अमी, जी भर पी ले।
अपनी राह अब चुन ले खुद ही,
हमारे तेवर पड़ गए ढीले।
मौत भी देखें, नहीं कफन में।
उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।
हमारा युग अब बीत रहा है।
मन शरीर सब रीत रहा है।
शिक्षा पा अब विमुक्त हुए तुम,
तुमको पा मन जीत रहा है।
परेशान ना होना तपन में।
उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।
नहीं चाह कोई, नहीं लक्ष्य है।
पौष्टिकता ही, तेरा पथ्य है।
सहयोग समन्वय प्रेम मिले तुझे,
जीवन पथ में प्रेम भक्ष्य है।
संभल तू उड़ना, तेज पवन में।
उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।
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