मैं दहेज़ हूँ!
आप सभी लोग मुझे बहुत अच्छी तरह से जानते- पहचानते हैं। प्रायः लोग मुझे ‘दहेज’ के नाम से जानते हैं।दहेज़ एक ऐसी संपति है, जिसे विवाह के समय ,पहले अथवा बाद में लड़की वाले द्वारा लड़के वाले को दिया जाता है। इस बात को इस प्रकार भी कहा जा सकता है,कि लड़के वाले द्वारा लड़की वाले से उसकी इच्छा या अनिच्छापूर्वक धन अथवा सामग्री अथवा दोनों रूपों में ले लिया जाता है।
वैसे तो मेरा जन्म शादी (सादी) के अवसर के लिए हुआ है। नाम तो सादी है ,पर ये केवल कोरे आदर्श और दिखावे की बात ही है।शादी के साथ बरबादी और आबादी का बहुत करीब का रिश्ता है। मानव समाज में आदर्श औऱ व्यवहार में मीलों का अंतर है। यहाँ दूर के ढोल सुहाने लगते हैं , पास में आने पर वे कानों में चुभते हुए शोर बन जाते हैं। यहाँ कभी दूध का दूध पानी का पानी नहीं होता। बड़े – बड़े आदर्शों की बातें कही जाती हैं,पर उन पर चलता कोई भी नहीं है। ढोल में पोल की तरह सब जगह पोल ही पोल है। इस मामले में धरती गोल है। आदमी की बातों में जितना झोल है ,उतना कहीं भी नहीं ।
कुछ साहसी बापों में इतना साहस होता है कि वे खुलकर दहेज की माँग करते हैं। वे न किसी कानून से और न कानून के बाप से डरते हैं। कुछ दब्बू और डरपोक टाइप के आदर्श बाप अपनी सहधर्मिणी को आगे बढ़ा देते हैं कि जो भी कहना ,माँगना है ,तू ही माँगना ,कहना। इससे मेरी नाक भी बच जाएगी और बगुले जैसी गर्दन उठाकर भरी सभा में कह सकूँगा कि देखिए मैंने तो कोई दहेज की माँग नहीं की। सहधर्मिणी चूँकि अर्धांगिनी भी है ,इसलिए पति का आधा अंग होने के कारण पूरा जिम्मा ले लेती है, आप कुछ मत कहना ,मैं सब निपट लूँगी। और वे निपट भी लेती हैं। इसीलिए तो ‘नारी आरी नारि की ‘ कहा गया है। पतिदेव पर्दे में बैठे पुजते रहते हैं। ससुर जी तो बहुत अच्छे हैं ,सास बड़ी खंट है। दहेज एक भिक्षा है , जिसे प्राप्त करने के लिए औऱ भी उपाय किए जाते हैं। इस कार्य के लिए बिचौलियों या मध्यस्थों को भी नियुक्त किया जाता है,कि भई ! तुम्हीं दहेज की बात करना,हम तो मौन ही रहेंगे। इससे हमारी नाक भी तनी ,बनी ,घनी रहेगी औऱ हम खुलकर कह सकेंगे कि
लड़की वालों ने स्वयं ही अपनी इच्छा से दिया है,हमने तो एक पैसा की भी माँग नहीं की थी।
बिना कमाया ,मुफ्त में आया धन किसे अच्छा नहीं लगता? इसलिए चोर के द्वारा चुराया हुआ गुड़ खरीदे हुए गुड़ से अधिक मीठा होता है। फिर मैं दहेज नाम धारी मुफ्त का धन भला किसे मीठा नहीं लगूँगा। अनिच्छा पूर्वक लिया हुआ ,दवाब बनाकर हथिआया गया दहेज किसे औऱ कैसे प्रिय नहीं होगा। लोग कहते हैं कि दहेज से बहू की सुंदरता,महत्त्व और गुणवत्ता में चार नहीं चौदह चाँद लग जाते हैं। सास के द्वारा बहू की साँस बन्द न कर दी जाए ,उसके लिए सेफ्टी वाल्व का काम मैं ही तो करता हूँ। ग्रहस्थी रूपी प्रेशर कुकर का शानदार, जानदार सुरक्षा वाल्व!
जिनके घर में पुत्रों ने जन्म लिया है , वे सौभाग्यशाली हैं। पर पुत्री जन्मदाताओं ने मानों कोई अपराध किया हो। एक ओर जिस समाज में ‘लड़का लड़की एक समान’ के खोखले नारे लगाए जाते हैं, इससे बड़ा झूठ औऱ अत्याचार हो ही नहीं सकता ,जिसके विरोध में हजार कानून बनाए जाएँ ,वहाँ उसका एक प्रतिशत भी अनुपालन नहीं हो ,इससे बड़ा मखौल और औऱ क्या हो सकता है? यह मेरे प्रति भी अन्याय की पराकाष्ठा है।इस अन्याय में पूत के पिता माता की अन्य आय जो कबड्डी खेल रही है।
इसे भला कौन ठुकरा सकता है! मजे की बात ये है कि सब मुझे बुरा कहते हैं ,परन्तु हृदय से अपनाते हैं। ये एक सोची-समझी साजिश औऱ विषम विडम्बना का मज़बूत उदाहरण है। मानव के खोखलेपन के ऐसे उदाहरण बहुत कम ही मिलेंगे। लड़की के पिता की कन्या को ब्याहने की मजबूरी का लाभ लेने वाला दूल्हे का बाप की खुशी का मीटर कितना ऊपर चढ़ जाता है ,इसे कोई दहेज पिशाच ही समझ सकता है। मेरी कोई जमीन हो या न हो ,पर मेरा आकाश अछोर है, जिसकी कोई साँझ हो ,पर नहीं इसका कहीं भोर है। आदमी ने मुझे पैदा किया, उसमें मेरा क्या दोष! बताए देता हूँ मुझ पर नहीं दिखाए कोई रोष! दुरुस्त कर ले पहले अपने होश! लड़के वालों का बना दिया मुझे अक्षय कोश,लड़की की सासु माँ का मन का तोष,भले सूख जाए पुत्री के पिता का गोश्त। मेरा नहीं कहीं भी कोई दोस्त।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’