कविता

सोच बदलो गाँव बदलो

गाँव को गाँव ही रहने दो,
इसे शहर न बनाओ ।
शहर की सुविधाओं को अब गाँव में ही ले आओ।

माना शहर में रौनक होती है,
मगर गाँव में अमन शान्ति भी होती है
गाँव की मिट्टी की खुशबू फिर से ले आओ।
गाँव को गाँव ही रहने दो शहर न बनाओ।
अपनी सोच को बदलो तो गाँव की तरक्की करोगे
वरना यूं कब तक शहर भागोगे,
खुद को अब मजबूत बनाओ।
गाँव को,,,,,,
ये खेतों की खुशबू ये पेड़ों के नीचे बनी चौपाल,
शहरों के आशियाने में कैसे मिलेगी,
वो फुर्सत के दिन फिर से कभी बुलाओ।
गाँव को ,,,,,,,,,

आज बिमारी ने बता दिया आसमां में हम जा बसे थे,
भूल गये थे जमी पर फिर से आ जाना है
और फिर वो ही गाँव याद आना है।
हमें दे दी है जमी फिर से वो ही गाँव ने,
अब जी भरकर खुद को आत्मनिर्भर बनाओ।
गाँव को गाँव ही रहने दो,
शहर न बनाओ।

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.