ग़ज़ल
हर वक़्त बोझ से मन भारी।
लगता मन भर का कन भारी।
मन ही चालक है जीवन का,
सँभले न रोग तो तन भारी।
जब दाल झूठ की गले नहीं,
लगता सच का तृन-तृन भारी।
कायर तो पीठ दिखाते हैं,
लगता उनको हर रन भारी।
जब साँपों में विष नहीं भरा,
उनको है अपना फन भारी।
जब दूध नहीं देती गौ माँ,
लगते किसान को थन भारी।
जिनके कंधे मजबूत नहीं,
दुर्बल कंधों पर गन भारी।
पढ़ने से हो जब अरुचि ‘शुभम’,
तब लगे घण्ट की टन भारी।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’