कर्म छोड़कर निर्भरता की,
शक्ति, धैर्य, प्रेम की देवी, समर्पण तेरी महानता है।
कर्म छोड़कर निर्भरता की, ये कैसी समानता है??
नर से सदैव कर्म में आगे।
तुझसे ही नर भाग्य हैं जागे।
नर तेरे बिन सदा अधूरा,
तू सदैव ही आगे-आगे।
प्रतियोगी बनती हो क्यूँ? कैसी आज वाचालता है।
कर्म छोड़कर निर्भरता की, ये कैसी समानता है??
कानूनों का जाल ये कैसा?
भरण-पोषण को देता पैसा।
पढ़ी-लिखी समर्थ नारी भी,
कमा न सके, सामर्थ्य ये कैसा?
पिता के घर में करे त्याग, पति पर क्यूँ विकरालता है।
कर्म छोड़कर निर्भरता की, ये कैसी समानता है??
कर्म से विमुख रार है करती।
स्वयं क्यों नहीं सक्षम बनती?
निर्भरता नर पर दिखला कर,
नारी जाति का सम्मान हरती।
आक्रामकता से जग पीड़ित, सृजन करे दयालुता है।
कर्म छोड़कर निर्भरता की, ये कैसी समानता है??