वक्त की किताब
वक्त की किताब के,
पन्नों को,
फिर से बांचना चाहता हूँ।
मैं आज फिर से ,
उन लम्हों में झांकना चाहता हूँ।
इतना मिला……
और कितना छूट गया ।
मैं उस हिसाब को ,
फिर से जांचना चाहता हूँ ।
वक्त की किताब के ,
उन पन्नों को ,
फिर से बांचना चाहता हूँ।
खुशियों के लम्हों ,
दर्द के लंबे दिनों को,
फिर से अांकना चाहता हूँ।
किस्मत के हर….
मजाक को मापना चाहता हूँ ।
वक्त की किताब के ,
उन पन्नों को ,
फिर से बांचना चाहता हूँ।
कहां से शुरू हुआ था ।
और खत्म होगा ….कहां तक ।
मैं जिंदगी के हर ,
मील पत्थर को जांचना चाहता हूँ।
वक्त की किताब के ,
उन पन्नों को ,
फिर से बांचना चाहता हूं।
— प्रीति शर्मा “असीम”