मेरे जीवन के कुछ अधुरे शब्द
जीवन मे मुझे कुछ शब्दों से काफी नाराज़गी मिली जो कभी पूरा हुआ ही नही भले उसे किसी तरह उपयोग किया जाये अगर हुआ भी तो सिर्फ भाग्य-वालो का ही ! जैसे – रिश्ता जिसमे कभी ना कभी मन-मुटाव आ ही जाता है कैसा भी रिश्ता हो माँ से बेटा का , पिता से बेटा का , चाचा से भतीजे से , भाई से भाई का , बहन से भाई का प्रेमी से प्रेमिका का रिश्ता जैसे हाल ही मे बहुत घटना पेपर , टी.वी पर सुनने को मिलता है , आरूषी तलवार का रिश्ता माँ बाप का रिस्त्ता ! इसी प्रकार प्यार या प्रेम का रिश्ता जो जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है जिसका जीवन मे सबसे ज्यादा एव खास स्थान है ! वो बिरले ही पूरा होता है खास तौर पे देखा जाये तो अधूरा ही होता है जैसा प्रेमी प्रेमिका , माता पिता , भाई बहन इस आधुनिकता मे अधूरा एक शौक हो गया है जैसे लैला मजनु का रिश्ता , शीरी फरहाद का रिश्ता आदी ! अगला ले ले तो ज़िंदगी ये तो कभी पूरा किसी का हुआ ही नही क्योकी अक्सर सुनने मे आता है की ये इतने दिन ही जीवित रहे , ये सोच रहे थे पूरा नही कर पाये , ये करने गए थे नही कीए चल बसे , किताब लिख रहे थे अधूरा छोड़कर चल बसे इस प्रकार की अनेको बात सुनने को मिलते है इसका तात्पर्य यही ना है की ज़िंदगी मे किसी का स्वप्न पूरा नही हुआ … बच्चों मे अक्सर सुनने को मिलता है की मैट्रीक , इंटर का रिजल्ट अच्छा नही आया आत्म हत्या कर लिया , या सरकारी नौकरी की तैयारी करता था मेहनत करने पर भी अच्छा रिजल्ट नही आया या जिसमे चाहा नही हुआ आत्म हत्या कर लिया ! ये नौजवानों , छात्रों मे हमेशा सुनने को मिलता है जैसे ड्रा कलाम जो vision 2020 देखना चाहते थे , रावण जो स्वर्ग मे सीढ़ी लगाना चाहता था , दामिनी जो ज़िन्दा रहकर डाक्टर बनना चाहती थी , और अनेको छात्र जो हर साल मई, जून के महीनों मे आत्महत्या करते है और कुछ अप्रैल के महीनों मे कुछ मैंट्रिक , इंटर के रिजल्ट के बाद और कुछ सिविल सर्विस के रिजल्ट के बाद दिल्ली मे या प्रयागराज के death of river मे ! अंतिम है वो है फरिस्ता जिससे मिलना हर कोई चाहता है लेकिन कोई मिल नही पाता है आम इंसान से लेकर साधु संत तक लेकिन किसी को मिले नही मिले उसी को जो ये आधुनिक जीवन से मुख मोड़ा जैसे स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस इत्यादि अन्य-था सभी साधु संत झूठ का ज़रिया बनाकर लोगो का शोषण कर रहे है !
— रुपेश कुमार