सिंधु सा गहरा प्रणय है
सिंधु सा गहरा प्रणय है, थाह जिसकी है नहीं |
प्रणय परणित साधाना बिन ,सृष्टि फलती है नहीं |
पुष्प परिमल यह खिला दे, थार और कछार में ,
यह न ऐसी वस्तु है जो प्राप्त हो बाजार में ,
आदि मध्य न अंत जिसका ,कब कहां किसको मिले ,
पालिया जिसने इसे दृग बिंदु निर्झर बन झरे |
रीत जाना प्रीत में किस्से कहानी है नहीं |
सिंधु सा ———
प्रेम की परणति नहीं जो छोड़ दे मझधार में ,
प्रीत पावन है वही जो, बीच भवर उबार ले |
है समायी सत्य -शिव और, सुंदरम की कामना ,
ईश की आराधना है, प्रेम पूरित भावना |
प्रेम बिन जीवन अधूरा ज़िंदगानी है नही |
सिंधु सा ———
चाह प्रतिफल की नहीं है प्रेम की अनुरक्ति में ,
है बहुत निर्माल्य सात्विक प्रेम की अभिव्यक्ति ये |
सुमन संकुल मृदुल खिलते ,गंध भीनी फैलती ,
भावनाएं लहर उठती,लालसाएं डोलती |
सुखद शीतल इससे बढ़ रमणीय कुछभी है नहीं |
सिंधु सा——-
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’