बेटी के कोमल सपनों को
बेटी के कोमल सपनों को ,
शिक्षा के दो पंख लगादो |
सपनो को पूरा कर पाए,
पंखो को परवाज़ भरादो |
बेटी के ……….
नहीं खिलौने घोड़ा गाड़ी ,
भाए कोई नहीं सवारी |
मैं स्तम्भ बनूँ शिक्षा का ,
शिक्षा का हर पाठ पढ़ा दो |
बेटी के ………
नहीं कीमती मागूँ कपड़े ,
नहीं चाहिए कंगन झुमके |
पढ़ लिख ऊँचा नाम करूँगी,
बस कॉपी किताब दिलादो |
बेटी के ………
बंधन की झूठी शादी में,
रीति नीति की परिपाटी में |
नही जकड़ना मुझको बाबा,
न हीरा न मोती मांगू,
मुझको कलम दवात मंगादो |
बेटी के ………
हम इक्कीसवीं सदी के बंदे ,
भेद भाव में अब भी अंधे |
बेटा पढ़े तरसती बेटी ,
बेटी को अधिकार जरा दो |
बेटी के ……….
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’