क्षणिकाएँ
पिघल न जाये गर दिल तो कहना
आँसूओं में मेरे संग संग चलना
मिल जाये गर मुझ जैसा कोई और
जो दिल चाहे सजा मुझे देना
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हाथ छुड़ाना तो एक बहाना था
सच तो हमसे मन भर जाना था
निभाई जो प्रीत कृष्ण ने राधा से
इंसानों ने कब प्रेम को जाना था
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गुजर गई वो जिंदगी थी
जी रहे हैं वो समझौता है
बिखर गई वो बन्दगी थी
समेट रहे हैं वो संजीदगी है
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दुनिया की सारी चीजें बेमानी हैं
जब साथ आपके इश्क़ न हो ।
मिल जाता है सुकून उस पल में
जब हाथ में हाथ एक पल को हो ।
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प्रेम तन्हा नहीं करता
प्रेम तौबा नहीं करता
फक्र करता है खुदा भी
उस पर जो प्रेम को
कभी रुसबा नहीं करता
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ये दुनिया समझती है बात
सिर्फ अपने हक़ की ,
कायनात की सिसकियों से
वो क्योंकर रखे वास्ता ।
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शब्द शब्द से मिलकर
बन जाती एक पहेली है
जिंदगी को मत मानो दुश्मन
ये तो एक सहेली है
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पल पल की सिहरन से
अक्सर दिल भी टूट जाता है
कैसा है ये जीवन का खेला
अपना भी पल में रूठ जाता है
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वक़्त की धार में बह जाते हैं
कश्तियों को सहारा देने वाले
तुम काट लेना जिंदगी प्रेम की तलवार से
मैं काट लूँगा जन्मों के इंतजार से ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़