गीत/नवगीत

मरता देखा है बसन्त!!

दुःखो का है नहीं अन्त!
नहीं जानता मैं बसन्त!!

बचपन कैसा सिसक रहा?
बुढ़ापा भी तो दुबक रहा।
जिस पर भोजन वस्त्र नहीं,
अलावों को भी तरस रहा।
मजबूरी में बना सन्त!
मरता देखा है बसन्त!!

प्रेम नाम से घृणा हुई।
जीवन है बस छुई-मुई।
साथ किसी का पा न सका,
सपने बन उड़ गए रुई।
मिला नहीं है कोई पन्त!
मरता देखा है बसन्त!!

मैं पग-पग हूँ छला गया।
रगड़ा हूँ, ना मला गया।
औरों की तो छोड़ो बात,
अपनों से ही ठगा गया।
प्रेम नाम ले, तोड़े दन्त!
मरता देखा है बसन्त!!

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)