कविता

शाम की चाय

आने का रहता है इन्तजार
जाने क्यों हर शाम को तेरा
दोस्तों की मंडली का होती है
एक दुशरे का प्यारी गपशप
थोड़ा सा भी गर हुई देर तो
मोवाईल पर कर देते कॉल
दिखे दुर से आवाज लगाते
क्यों हुई देरी आने में यार
शाम की चाय एक नशा सा
मीठी-मीठी सुखद एहसास

दुर बहुत बैठे अकेले हम
यादों में खोये थे आज
प्याला चाय का लिए खड़ी
आयी थी नई बहुरानी आज
फिर याद आ गई ” शाम की चाय ” !

— शिवनन्दन सिहं

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968