उठती कहाँ हमारी नजर, अब किसी तरफ। नयनों में कैद कोई, दिखता है हर तरफ । मेरे कदम इशारों के पायमाल हैं। मिलते ही बढ़ चले हैं कदम ,मेरे उस तरफ। मिलने की मधुर याद लिए , मन हुआ मगन। बिछुड़न की उदासी है ,होठों पे ना हरफ। कहते हैं पूर्वजन्म के संबंध हैं सभी […]
Author: शिवनन्दन सिंह
कविता
ख्बाव के अंधेरे में उलझा हुआ इंसान है, रिश्तों की बात आई तो जल उठा इंसान है । चेहरे को जिस भीड़ में हमने हंसते देखा है, तन्हाई में उस चेहरे को सिसकते हुए देखा है । वक्त के थपेड़ों में सबको घिसटते देखा है, समय के साये में दिल टूटते हुए देखा है । […]
गजल
रखना संभल के पाँव, पटा धुंध से शहर है। अब आदमी कहाँ रहा, हैवान का कहर है। ये नोंच लेगें बोटियां, नरनुमा अमानुष। रक्खो छुपा के हुस्न, दरिन्दों का शहर है। हिस्सों में है जज्बात, जब हो जिस्मफरोशी । दंगा है, लूटपाट है, जंगल सा शहर है। हर चौक पर नेता हैं, और गुंडे शहर […]
हमने साथ बिताई है
तुम ही जानो कितनी सांसें, हमने साथ बिताई है । जीवन की तपती दुपहरिया , देहरी संग छुपाई है। बदरा बरसे छम-छम-छम , बिजली से आँख चुराई है। पूस की जाड़ा बदन कंपाए , गुदड़ी से जान बचाई है। फागुन मास की फगुनाई में संग – संग टहल लगाई है। तुम ही जानो कितनी सांसें […]
कहाँ फर्क पड़ता है
कोई प्यार करे, कोई नफरत करे, किसी को कहाँ फर्क पड़ता है। सबको निज सफर पर चलना है, ख्याल गलती का रखना पड़ता है। ये संसार तो झमेलों का सागर है, तैर कर ही निकलना पड़ता है। इस जहाँ से दूर और भी है कोई , हर किसी का हिसाब रखना पड़ता है। कर्म फल […]
ग़ज़ल
रिश्तों के कई रूप आंखों में छिपा रखा है, अपने सिने में हमने कई राज दबा रखा है। मुस्कुराहट समेटने की बहुत कोशिश की हमने, आँसुओं को पिटारे में कैद कर बंद रखा है। पिसते हुए जीवन में हमने सिर्फ दर्द पाया है , जीवन ने तो हमे अपना बंधक बना रखा है। कहां खोलें […]
संजीव भैया
सुबह की चाय चौकड़ी में एक खास व्यक्ति का इंतजार करते देख मुझे बड़ी अजीब सा लगता ,पर मैं कभी व्यक्त नहीं कर पाया। सच में वह क्या सम्मान के लायक है ? संजीव भैया के संबोधन से पहचाने ,जाने वाले वो एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत हैं , घर […]
मुर्दों का शहर न होने दो
जागो , कब-तक जागोगे , मुर्दों का शहर न होने दो । जिन्दादिली कायम रखो, खुद पर कहर न होने दो । इतना न अधिक विनम्र बनो, कि खून ही ठंडा पर जाये । हे क्षत्रप तुम इस दुनिया में, अब और न जौहर होने दो। समय के साथ बदल जाओ , अब और न […]
ग़ज़ल
आग ही आग हर तरफ देखा। शाख का मूल का फरक देखा। बूढ़े पत्तों को शाख रखते कब , खास रिश्तों पे भी बरफ देखा। प्यार है आदमी में मतलब से, देखा जो प्यार तो मसरफ देखा। लिख रक्खा ललाट पर किस्मत , कैसे पढ़ता , न जब हरफ देखा। वीज बोता है नफरतों का […]
चारों तरफ है शोर बहुत
इधर देखो, उधर देखो , चारों तरफ है शोर बहुत । कुछ लोग फेकते हैं पत्थर , जो समझ रहे कमजोर बहुत । सेकुलर-सेकुलर चिल्लाते वो, जो सचमुच में है चोर बहुत । बागों से सांप तो भागेगें,, माली ने पाले मोर बहुत। दुश्मन तो आतंकी होगें ही, अपने कुछ हैं मुहजोर बहुत। यह भ्रम […]