मुक्तक/दोहा

दोहे

घर जमीन बिक जात है, और हुस्न बाजार, 

मजबूरी  पीछे  छिपी,  क्या  जाने   संसार ।

बिके जवानी बचपना, इज्जत की  दीवार,

भला  कौन है  पौंछता, बहे अश्रु  लाचार।

विधायक जी मंत्री सभी, और बिके सरकार, 

जाकी जैसी हैसियत , दिखलाते  चमत्कार।

बडे  बिके  छोटे  बिके ,  बिकते  रिश्तेदार ,

एक दूजे के द्वेष में , रहा न मन उजियार ।

पशु-पक्षी  पानी  पवन , हो  जाते  लाचार,

बिकते मजबूरी  सखे , भले होय  हुसियार ।

—   शिवनन्दन सिंह 

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968