गर्व है … हम भारतवासी हैं
जहाँ गंगा ,शिव और काशी है,
हैं मेल – मिलाप के अच्छे ढंग,
हम आपस में जो विश्वासी हैं .!
उत्तर में हिम – हिमालय है
जो देवस्थान, भव्यालय है
दक्षिण में है सागर लहराता
बारह कोटिक शिवालय है।
जहाँ देवी – देवता को पूजें
भूलें ना , भक्ति – भाव तजें
जहाँ राम- रहीम हो संग संग
ईश्वर अल्लाह एक साथ भजें ।
जहाँ मात- पिता ही ईश्वर हैं
सबसे बढ़कर अखिलेश्वर हैं
चरणों में जिनकी स्वर्ग बसा
हम उस संस्कृति के सहचर हैं।
हमसे सीने में धैर्य रखा
कब गैरों-सा मन बैर रखा
दुश्मन लेकिन जब ललकारे
तब भी हमने कुछ खैर रखा।
अपनी माटी है पतितपावनी
जैसी गंगा, निर्मल पानी
साधूसंतों औ, वेद पुराण
गूँजे अब भी अमृतवाणी ।।
इतना ही मत समझें, है कथा
सदियाँ गवाह स्वर्णिम- कथा
जो रामायण – महाभारत की
अमिट ,अक्षुण गूढ़तम गाथा ।
मत मलिन करो इसकी छवि
किसने पाटा है …चाँद , रवि ..
रहने दो अपनी ही गरिमा को
करजोड़ कहे कविमन यही।।
— सीमा शर्मा सरोज