हिंदी के महाकवि
माँ वाग्देवी पूजनोत्सव और महाप्राण निराला जी के जन्मदिवस….
प्रत्येक प्राणियों और वृक्ष -पादपों की पूजा -अर्चना हिन्दू धर्म में ही देखे जा सकते हैं, यह इस धर्म की महान विशेषता है । शाकाहार इस धर्म की उन्नत स्थिति है, किन्तु कई जगह बलि -प्रथा और सवर्ण -अवर्ण में भेद नापाक इरादे लिए भी हैं । सनातन हिन्दू धर्म में अवतार और प्रतीक ‘आस्था’ लिए है, यह कितने सत्यार्थ और तथ्यात्मक है – इनपर अभीतक शोध चल रही है, किंतु प्रतीकार्थ ही ‘प्रतिमा’ का निर्माण ने सम्पूर्ण दुनिया को फोटोज़, चलचित्र और सिनेमाई संसार दिया । धरती देवी से लेकर अन्न देवता, तो विद्या देवी भी इसके प्रसंगश: है । हाँ, श्रद्धा हर पल हर क्षण ‘आस्थात्मक’ हो स्वीकार्य है ।
माघ शुक्ल पक्ष से वासंती ऋतु का आरंभ होता है, इसकी पंचमी तिथि को वसंत पंचमी या श्री पंचमी भी कहते हैं, इस दिन विद्या की देवी वाग्देवी व माँ सरस्वती व शारदे की पूजा -अर्चना होती है । हो सकता है, इसी तिथि को माँ ने जन्म व अवतार लिए हों ! हिन्दू धर्म में जन्म लेने के कारण सापेक्षतः मुझ प्राणी द्वारा माता को सादर नमन ।
वसंत पंचमी को हिंदी के महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने भी जन्म लिए थे । बंगाल में जन्म और हिंदी की कोशिकीय -सेवा सच में निराली ‘विज़न’ लिए हैं । आस्तिक और स्वच्छंदमुक्त कवि ने माँ शारदे के स्मरणश: लिखा है–
नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल ।
जीवन के रथ पर चढ़कर
सदा मृत्यु पथ पर बढ़कर
महाकाल के खरतर शर सह
सकूं, मुझे तू कर दृढ़तर;
जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
दृग जल से पा बल बलि कर दूं
जननि, जन्म श्रम संचित पल ।
बाधाएं आएं तन पर
देखूँ तुझे नयन मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर;
क्लेद युक्त, अपना तन दूंगा
मुक्त करूंगा तुझे अटल
तेरे चरणों पर दे कर बलि
सकल श्रेय शर्म संचित फल ।
ध्यातव्य है, माँ सरस्वती देवी पर उनकी मशहूर कविता ‘वर दे, वीणा वादिनी, वर दे…..’ है । निराला जयंती पर हिंदी संसार और हिंदी के अल्पप्राण नहीं, वरन ‘महाप्राण’ को सादरनायें !