क्षणिका

क्षणिका

जली को
अगन कहते हैं
बुझी को
शमन कहते हैं
तन के अंग अंग
मन के कण कण में
बसी उस कर्णधार को
कृष्ण नाथन कहते हैं!
— मनोज शाह ‘मानस’ 

मनोज शाह 'मानस'

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