गज़ल
दुनिया वाले ताने कसते रहते हैं
हम भीगी आँखों से हंसते रहते हैं
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उनकी बरसने की औकात नहीं होती
जो बात-बेबात गरज़ते रहते हैं
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पूरे हो नहीं सकते है मालूम मगर
कुछ सपने आँखों में पलते रहते हैं
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धार है तलवारों की उनके लहज़े में
लेकिन हाथों में गुलदस्ते रहते हैं
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उनको सोच कि जगह नहीं है रखने की
हम दाने-दाने को तरसते रहते हैं
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।